गजल
ज़िन्दगी की उदास राहों में
एक सहारा तलाश करता हूं
गमके सागर में दिल की कश्ती है
मैं किनारा तलाश करता हूं
कोई हमदम न कोई वाली है
दूर मन्जिल रात काली है
जिस से आंखों को नूर मिल जाये
वह सितारा तलाश करता हूं
क्या कहूं कितने ज़ख्म खाये हैं
मेरी राहों में गम के साये हैं
प्यास बुझ जाये जिस से नज़रों की
वह नज़ारा तलाश करता हूं
कुछ नहीं है जहान फानी है
बस यूंही ज़िन्दगी बितानी है
जिस में इज्ज़त मिले मुझे (मासूम)
मैं वह चारा तलाश करता हूं
मेरी राहों में गम के साये हैं
प्यास बुझ जाये जिस से नज़रों की
वह नज़ारा तलाश करता हूं
कुछ नहीं है जहान फानी है
बस यूंही ज़िन्दगी बितानी है
जिस में इज्ज़त मिले मुझे (मासूम)
मैं वह चारा तलाश करता हूं
Sayer Masoom Ahmad Barkati
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