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Friday, 24 July 2020

रक्षाबंधन विशेष दलित कविता # दलित का अपनी बहन से विन्रम निवेदन

*रक्षाबंधन विशेष:-*

आहत न होना बहन,
मैं दिल की खोल रहा हूँ..!!
जय भीम दीदी,
मैं तेरा भाई बोल रहा हूँ..!!

तेरा घर है तू सौ बार नहीं,
हज़ार बार आना..!!
पर राखी बाँधने, 
तू कल मत आना..!!

ढोंग पाखन्ड से,
मुँह मोड़ चुका हूँ..!!
ब्राह्मणवादी परम्पराओं,
से नाता तोड़ चुका हूँ..!!

सरफरोसी जज्बा कौमी,
आदी हो गया है..!!
तेरा भाई पक्का,
अम्बेडकरवादी हो गया है..!!

तेरी रक्षा सुरक्षा से,
मुझे ऐतराज़ नही है..!!
मगर मेरा फर्ज किसी,
राखी का मोहताज नही है..!!

दु:ख दर्द पीर भारत,
की नारी का ले गये..!!
बाबा साहब तो बिन राखी, 
के सारे अधिकार दे गये..!!

बिगडा हुआ कल था, 
वो आज बना दिया है..!!
बाबा साहब ने नारी,
को सरताज बना दिया है..!!

मेरा साथ दे और,
तू भी अपना रुख मोड़ ले..!!
दौज दिवाली होली,
मनाना तू भी छोड़ दे..!!

नाराज न होना बहना मेरी,
परसों खुद लेने आऊंगा..!!
प्रीत रीत ओर फर्ज अर्ज,
राखी बिन सभी निभाऊंगा..!!

*बाबा साहब का कहना*
👇👇
शिक्षित बनो,  संघर्ष करो... और संगठित रहो..!!
         

 जय भीम, जय भारत, जय भाईचारा 💪

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