किसी मेले में एक स्टाल लगा था जिस पर लिखा था। *"अक्ल खरीद-फरोख्त स्टाल "*
लोगों की भीड़ उस स्टाल पर लगी थी !मै भी पहुंचा तो देखा कि उस स्टाल पर अलग अलग शीशे के जार में कुछ रखा हुआ था !
एक जार पर लिखा था-
*यहूदी की अक्ल -100000 रुपये किलो..!*
दूसरे जार पर लिखा था -
*ईसाई की अक्ल-50000 रुपये किलो..!*
तीसरे जार पर लिखा था-
*हिन्दू की अक्ल-20000 रुपये किलो..!*
चौथे जार पर लिखा था-
*मुस्लिम की अक्ल 100 रुपये किलो..!*
*मैं हैरान हो गया कि इस कमज़र्फ ने मुसलमानों की अक्ल की कम कीमत क्यों लगाई ?*
गुस्सा भी आया कि इसकी इतनी मज़ाल, अभी मजा चखाता हूँ।
*गुस्से से लाल मैं भीड़ को चीरता हुआ दुकानदार के पास पहुंचा और उससे पूछा कि तेरी हिम्मत कैसे हुई जो मुस्लिम क़ौम की अक्ल इतनी सस्ती मे बेचने की?*
उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कराया, हुजूर बाज़ार के कायदे जो चीज ज्यादा पैदा होती है, उसका रेट गिर जाता है !आप लोगों की इसी बहुतायत अक़्ल की वज़ह ही तो आप लोग कम लिखे पढ़े हैं...!
*कोई पूछने वाला भी नहीं है आप लोगों को.. देर रात तक चाय की गुमटियों में, पान के गल्लों में पड़े रहते हो,एक मामूली कीमत बर्तन या मुर्गे में बिक जाते हैं.!*
जो आपका खून चूसते हैं उसके ही तलवे चाटते हैं। *अपने लोगों को छोड़कर बाहरी लोगों के सपोर्ट करते हैं।अपने ताबनाक माजी और लाजवाब हुस्न अखलाक को छोड़कर गैरों हल्की ज़हनियत की तरफ भागते हो।*
सब एक दूसरे की टांग खींचते हो
और सिर्फ अपना नाम बड़ा देखना चाहते हैं ! किसी की मदद नहीं करते...काम करने वाले की बुराइयाँ करते है और नीचा दिखाते हैं !
*जाइये साहब...पहले अपनी क़ौम और मिल्लत को समझाइये और मुकाम हासिल करिए ! और फिर आइये मेरे पास..तो आप जिस रेट में कहेंगे, उस रेट में आपकी बुद्धि बेचूंगा !!*
मेरी जुबान पर ताला लग गया और मैं अपना सा मुंह लेकर चला आया !
इस छोटी सी कहानी के जरिए से
जो कुछ मैं कहना चाहता हूं,आपसे उम्मीद करता हूँ कि समझने वाले समझ गये होंगे !
*नोट : बराये मेहरबानी इस पोस्ट को अपने क़ौम और मिल्लत के बीच आगे बढ़ाएँ और सुधार के लिए चर्चा करें।।*
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