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Tuesday, 14 July 2020

मसाइले क़ुर्बानी /कुर्बानी किस पर फर्ज है क़ुर्बानी करने के जायज तरीके पार्ट 1 -2-3-4-5-6

मसाइले क़ुर्बानी-1*

*मसअला* - साहिबे निसाब यानि जिसके पास 7.5 तोला सोना या 52.5 तोला चांदी या इसके बराबर की रक़म जो कि तक़रीबन 30000 रू बन रही है अगर क़ुर्बानी के दिनों में मौजूद है तो उस पर क़ुर्बानी वाजिब है,क़ुर्बानी वाजिब होने के लिये माल पर साल गुज़रना ज़रूरी नहीं

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 132

*ⓩ जिसके पास 30000 रू कैश या इतने का सोना-चांदी या हाजते असलिया के अलावा कोई सामान है तो क़ुर्बानी वाजिब है युंही साल भर तो फक़ीर था मगर क़ुर्बानी के 3 दिनों में कहीं से उसे 30000 रू मिल गया क़ुर्बानी वाजिब हो गयी,किसी के पास कई मकान हैं और वो सब उसके खुद के रहने के लिए है अगर चे वो करोड़ों की कीमत रखते हों तब भी वो हाजते असलिया में दाखिल है क़ुर्बानी नहीं लेकिन अगर किसी मकान में किरायेदार को बसा दिया और उसका किराया इतना है कि निसाब को पहुंच जाये तो क़ुर्बानी वाजिब होगी,उसी तरह दुकानदार का काम करने का सामान मस्लन उसके औज़ार मशीनें फर्नीचर पर्सनल इस्तेमाल का सामान हाजते असलिया में दाखिल है,एसी-फ्रिज-बाईक-फोर व्हीलर अगर चे कई सारी मौजूद हो फिर भी ये सब हाजते असलिया में दाखिल हैं मगर टी.वी हाजते असलिया में दाखिल नहीं है तो अगर किसी के पास 30000 रू की टीवी मौजूद है तो उस पर क़ुर्बानी वाजिब है,रमज़ान शरीफ में जब मैंने यही मैसेज ज़कात के तअल्लुक़ से बताया तो कई लोगों ने ऐतराज़ किया था कि टीवी पर ज़कात कैसे निकाली जा सकती है तो इसका जवाब ये है कि मैंने टीवी पर ज़कात नहीं निकलवाई थी बल्कि उस माल पर ज़कात देनी होगी जो कि एक हराम चीज़ में फंसा रखी है ये आलये गुनाह है जिसकी उल्मा हरगिज़ इजाज़त नहीं देते तो अब 30000 रू की टीवी खरीदना फिज़ूल ही तो हुआ लिहाज़ा उस माल पर ज़कात भी निकलेगी और क़ुर्बानी भी वाजिब होगी*

*मसअला* - साहिबे निसाब औरत पर खुद उसके नाम से क़ुर्बानी वाजिब है,मुसाफिर और नाबालिग पर क़ुर्बानी वाजिब नहीं

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 132

मसाइले क़ुर्बानी-2*

*ⓩ औरत के पास जे़वर हैं मगर शौहर साहिबे निसाब नहीं यानि ₹30000 का मालिक नहीं है तो औरत पर क़ुर्बानी वाजिब है मर्द पर नहीं,इसी तरह मुसाफिर यानि जो अपने वतन से 92.5 किलोमीटर दूर गया और वहां 15 दिन से कम ठहरना है तो उस पर क़ुर्बानी वाजिब नहीं और अगर 15 दिन से ज़्यादा ठहरना है तो क़ुर्बानी वाजिब है,क़ुर्बानी वो परदेस में भी करा सकता है या उसके घर पर ही कोई उसके नाम से करा दे मगर उसकी इजाज़त होनी चाहिए दोनों सूरतों में क़ुर्बानी हो जायेगी,युंही मुसाफिर अगर फिर भी क़ुर्बानी करना चाहता है तो कर सकता है नफ्ल हो जायेगी सवाब मिलेगा*

*मसअला* - जो साहिबे निसाब है उस पर हर साल क़ुर्बानी वाजिब है उसे हर साल अपने नाम से क़ुर्बानी करनी होगी कुछ लोग 1 साल अपने नाम से क़ुर्बानी करते हैं दूसरे साल अपने बीवी बच्चों के नाम से क़ुर्बानी करते हैं,ये नाजायज़ है

📕 अनवारुल हदीस,सफह 363

*ⓩ इसी तरह अवाम में ये भी मशहूर है कि पहली क़ुर्बानी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के नाम से करनी चाहिए ये भी सही नहीं है,हां जैसा कि मैं पहले बता चुका कि अगर इस्तेताअत हो तो 2 क़ुर्बानी का इंतेज़ाम करे एक अपने नाम से और एक हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के नाम से ये अच्छा है और अगर खुद पर क़ुर्बानी वाजिब है और एक ही क़ुर्बानी करता है मगर किसी और के नाम से तो वाजिब का तर्क हुआ गुनहगार होगा*

*मसअला* - क़ुर्बानी का वक़्त 10 ज़िल्हज्ज के सुबह सादिक़ से लेकर 12 के ग़ुरुबे आफताब तक है,मगर जानवर रात में ज़बह करना मकरूह है

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 136

मसाइले क़ुर्बानी-3*

*मसअला* - क़ुर्बानी का वक़्त 10 ज़िल्हज्ज के सुबह सादिक़ से लेकर 12 के ग़ुरुबे आफताब तक है मगर जानवर रात में ज़बह करना मकरूह है

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 136

*ⓩ चुंकि गांव में ईद की नमाज़ नहीं है लिहाज़ा वहां सूरज निकलने के साथ ही क़ुर्बानी हो सकती है मगर शहर में जब तक कि पहली नमाज़ ना हो जाए क़ुर्बानी नहीं हो सकती हैं चाहे इसने पढ़ी हो या ना पढ़ी हो इससे मतलब नहीं,और अगर किसी ने नमाज़ से पहले क़ुर्बानी कर ली तो उसका गोश्त तो खा सकता है मगर क़ुर्बानी दूसरी करनी होगी वरना गुनाहगार होगा,युंही अगर दिन में क़ुर्बानी करने वाला ना मिला या किसी तरह की पाबन्दी लगी हुई है तो रात में क़ुर्बानी कर सकते हैं जायज़ है*


मसाइले क़ुर्बानी-4*

*मसअला* - जानवरों की उम्र ये होनी चाहिए ऊंट 5 साल,गाय-भैंस 2 साल,बकरा-बकरी 1 साल,भेड़ का 6 महीने का बच्चा अगर साल भर के बराबर दिखता है तो क़ुर्बानी हो जायेगी

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 139

*ⓩ जानवरो की जो उम्र बताई गई उसमे अगर 1 दिन भी कम होगा क़ुर्बानी नहीं होगी मसलन किसी बकरी ने बच्चा तीसरी बक़र ईद को दिया तो अगले साल पहले और दूसरे दिन भी उसकी क़ुर्बानी नहीं हो सकती हां दूसरी बक़र ईद को वो पूरा 1 साल का हो गया तो अब तीसरी को उसकी क़ुर्बानी हो सकती है,यहां ये भी ज़हन में रखें कि जानवर बेचने वाले अक्सर झूठी कसमें खाकर या ये कहकर कि घर का पला जानवर है 1 साल का पूरा हो चुका है बेच देते हैं,आपने खरीद लिया मगर कई लोगों ने देखने के बाद बताया कि वो 1 साल का नहीं है तो अगर वो लोग जानवरों की अच्छे जानकार हैं तो उसकी क़ुर्बानी नहीं हो सकती लिहाज़ा जानवर जांच कर साथ खरीदें*

*मसअला* - काना,लंगड़ा,लागर,बीमार,जिसकी नाक या थन कटा हो,जिसका कान या दुम तिहाई से ज्यादा कटी हो,बकरी का 1 थन या भैंस का 2 थन खुश्क हो ऐसे जानवरों की क़ुर्बानी नहीं हो सकती

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 139

मसाइले क़ुर्बानी-5*

*ⓩ क़ुर्बानी के जानवर को ऐब से खाली होना चाहिये अगर ज़्यादा ऐबदार है तो क़ुर्बानी नहीं होगी और अगर थोड़ा भी ऐब होगा तो क़ुर्बानी तो हो जायेगी मगर मकरूह है,जानवर की पैदाईशी सींगh नहीं है तो क़ुर्बानी हो जायेगी मगर सींग थी और जड़ से टूट गयी क़ुर्बानी नहीं हो सकती अगर थोड़ी सी टूटी है तो हो जायेगी,भैंगे की क़ुर्बानी हो जायेगी मगर अंधे की नहीं युंही जिसका काना पन ज़ाहिर हो उसकी भी क़ुर्बानी जायज़ नहीं,इतना बीमार है कि खड़ा होता है तो गिर जाता है या इतना लागर है कि चल भी नहीं सकता क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जानवर का कोई भी उज़ू अगर तिहाई से ज़्यादा कटा है तो क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जिसके पैदाईशी कान ना हो या एक ही कान हो क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जिसके दांत ही ना हो या जिसके थन कटे हों या एक दम सूख गए हों क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जिसकी नाक कटी हो या जिसमें नर व मादा दोनों की अलामत हो क़ुर्बानी नहीं हो सकती*

*मसअला* - मय्यत की तरफ से क़ुर्बानी की तो गोश्त का जो चाहे करे,लेकिन किसी ने अपनी तरफ से क़ुर्बानी करने को कहा और मर गया या क़ुर्बानी अगर मन्नत की है तो उसका गोश्त ना खुद खा सकता है ना ग़नी को दे सकता है बल्कि पूरा गोश्त सदक़ा करे

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 144

*ⓩ यानि किसी ने वसीयत की कि मेरी तरफ से क़ुर्बानी करना और वो मर गया या किसी ने अपनी मन्नत की क़ुर्बानी की तो उसमे से एक बोटी भी नहीं खा सकता बल्कि पूरा गोश्त सदक़ा करे अगर खा लेगा तो जितना खाया है उतने का माल सदक़ा करे और अगर खुद किसी मय्यत के नाम से ईसाले सवाब की गर्ज़ से क़ुर्बानी की तो गोश्त खा सकता है*



मसाइले क़ुर्बानी-6*

*मसअला* - क़ुर्बानी का गोश्त काफिर को हरगिज़ ना दें और बदमज़हब मुनाफिक़ तो काफिर से बदतर है लिहाज़ा उसको भी हरगिज़ ना दें

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 144

*ⓩ वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी राफज़ी अहले हदीस जमाअते इस्लामी और जितने भी बद मज़हब फिरके हैं उन सबको क़ुर्बानी का गोश्त नहीं दे सकते अगर देंगे तो गुनहगार होंगे*

*मसअला* - जो जानवर को ज़बह करे बिस्मिल्लाह शरीफ वोह पढ़े किसी दूसरे के पढ़ने से जानवर हलाल ना होगा

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 121

*ⓩ बेहतर है कि जिसके नाम से क़ुर्बानी हो रही है वो बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर कहकर छुरी चलाये वरना जो भी ज़बह करे वो पढ़े*

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